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Tuesday, December 29, 2015

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं

!! ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् !!
*देवसंस्कृति की माता ... ' गायत्री '
गायत्री माता वेदमाता है ! सारे वेदों का जन्म गायत्री से ही हुआ है ! उसी ने सारी संस्कृति और सभ्यता को जन्म दिया ! अतः गायत्री माता वेदमाता बनी ! इसके बाद गायत्री माता देवमाता बनी ! हिंदुस्तान के निवासी देवता थे ! वे स्वयं तो कम खाते थे , पर दूसरों को अधिक खिलाते थे ! यहाँ के नागरिकों ने सारी दुनियाँ को अपनी संपदा बाँट दी , इसलिए वे देवमानव कहलाए ! अकेले खाते समय उन्हें मन में अप्रसन्नता होती और दूसरों को खिलाते समय वे प्रसन्न होते !
जब गायत्री हमारे ह्रदय में उदय होती है , तो हमारे जीवन को चमकाकर रख देती है ! वह हमारे विचारों में परिवर्तन कर देती है ! हमें केवल अपना परिवार ही नहीं , सारा समाज और देश दिखलाई पड़ता है और हम देवता बनते चले जाते हैं ! गायत्री माता हंस पर बैठकर कमंडल लेकर नहीं आती ! वह करुणा के रूप में , दया के रूप में हमारे अंदर आती है ! यही उसका स्वरुप है , जो हमें देवता बनाकर चला जाता है और हम देवता जैसा जीवन जीने लगते हैं ! गायत्री माता की कृपा से हम लोक-मंगल हेतु अपनी बुद्धि , धन और समय को लगाने लगते हैं ! हमारा जीवन धन्य हो जाता है !
सारे संसार में गायत्री मंत्र का विस्तार हो ! यह मात्र हिन्दुओं तक ही सीमित न रहे , यह ब्राह्मणों का ही न रह जाए , बल्कि विश्वमानव का मंत्र बने ! विश्वमाता से मतलब है की सारा विश्व एक नए आधार पर एक होने जा रहा है ! एक नई संस्कृति आ रही है ! एक नया सार्वभौम धर्म आ रहा है ! सारी दुनियाँ इस एक ही केंद्र के ऊपर इकट्ठी होने जा रही है ! हम सब एक आचारसंहिता और एक मातृभाव में बंधने जा रहे हैं ! गायत्री माता ईमानदारी , नेकनीयती , सज्जनता और शराफत की देवी है ! हंस इसका वाहन है ! गायत्री माता की स्थापना करके हम राजहंस पैदा करना चाहते हैं ! गायत्री उपासकों में राजहंस की वृति पैदा करना चाहते हैं !!
- वेदमूर्ति तपोनिष्ठ युगऋषि श्रीराम

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