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Friday, January 29, 2016

अब आ जा तू मेरी कब्र पर एक बार तो माँ कह जा

राज्यस्तरीय काव्यस्पर्धा में  प्रथम क्रमांक प्राप्त मराठी कविता का हिंदी रूपांतर )

" शरीर में रौंगटे खड़े कर देने वाली कविता "

🌺"माँ की इच्छा"🌺

महीने बीत जाते हैं
साल गुजर जाता है
वृद्धाश्रम की सीढ़ियों पर
मैं तेरी राह देखती हूँ।

              आँचल भीग जाता है
              मन खाली खाली रहता है
              तू कभी नहीं आता
              तेरा मनि आर्डर आता है।

इस बार पैसे न भेज
तू खुद आ जा
बेटा मुझे अपने साथ
अपने घर लेकर जा।

            तेरे पापा थे जबतक
            समय ठीक रहा कटते
            खुली आँखों से चले गए
            तुझे याद करते करते।
           
अंत तक तुझको हर दिन
बढ़िया बेटा कहते थे
तेरे साहबपन का
गुमान बहुत वो करते थे।

         मेरे ह्रदय में अपनी फोटो
         आकर तू देख जा
         बेटा मुझे अपने साथ
         अपने घर लेकर जा।

अकाल के समय
जन्म तेरा हुआ था
तेरे दूध के लिए
हमने चाय पीना छोड़ा था।

        वर्षों तक एक कपडे को
        धो धो कर पहना हमने
        पापा ने चिथड़े पहने
        पर तुझे स्कूल भेजा हमने।

चाहे तो ये सारी बातें
आसानी से तू भूल जा
बेटा मुझे अपने साथ
अपने घर लेकर जा।

         घर के बर्तन मैं माँजूंगी
         झाडू पोछा मैं करूंगी
         खाना दोनों वक्त का
         सबके लिए बना दूँगी।

नाती नातिन की देखभाल
अच्छी तरह करूंगी मैं
घबरा मत, उनकी दादी हूँ
ऐंसा नहीं कहूँगी मैं।

          तेरे घर की नौकरानी
          ही समझ मुझे ले जा
          बेटा मुझे अपने साथ
          अपने घर लेकर जा।

आँखें मेरी थक गईं
प्राण अधर में अटका है
तेरे बिना जीवन जीना
अब मुश्किल लगता है।

            कैसे मैं तुझे भुला दूँ
            तुझसे तो मैं माँ हुई
            बता ऐ मेरे कुलभूषण
            अनाथ मैं कैसे हुई ?

अब आ जा तू मेरी कब्र पर
एक बार तो माँ कह जा
हो सके तो जाते जाते
वृद्धाश्रम गिराता जा।

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

Tuesday, January 19, 2016

माँ बहुत झूठ बोलती है.........

...........माँ बहुत झूठ बोलती है............

सुबह जल्दी जगाने, सात बजे को आठ कहती है।
नहा लो, नहा लो, के घर में नारे बुलंद करती है।
मेरी खराब तबियत का दोष बुरी नज़र पर मढ़ती है।
छोटी छोटी परेशानियों का बड़ा बवंडर करती है।
..........माँ बहुत झूठ बोलती है।।

थाल भर खिलाकर, तेरी भूख मर गयी कहती है।
जो मैं न रहूँ घर पे तो, मेरी पसंद की
कोई चीज़ रसोई में उससे नहीं पकती है।
मेरे मोटापे को भी, कमजोरी की सूज़न बोलती है।
.........माँ बहुत झूठ बोलती है।।

दो ही रोटी रखी है रास्ते के लिए, बोल कर,
मेरे साथ दस लोगों का खाना रख देती है।
कुछ नहीं-कुछ नहीं बोल, नजर बचा बैग में,
छिपी शीशी अचार की बाद में निकलती है।
.........माँ बहुत झूठ बोलती है।।

टोका टाकी से जो मैं झुँझला जाऊँ कभी तो,
समझदार हो, अब न कुछ बोलूँगी मैं,
ऐंसा अक्सर बोलकर वो रूठती है।
अगले ही पल फिर चिंता में हिदायती होती है।
.........माँ बहुत झूठ बोलती है।।

तीन घंटे मैं थियटर में ना बैठ पाऊँगी,
सारी फ़िल्में तो टी वी पे आ जाती हैं,
बाहर का तेल मसाला तबियत खराब करता है,
बहानों से अपने पर होने वाले खर्च टालती है।
..........माँ बहुत झूठ बोलती है।।

मेरी उपलब्धियों को बढ़ा चढ़ा कर बताती है।
सारी खामियों को सब से छिपा लिया करती है।
उसके व्रत, नारियल, धागे, फेरे, सब मेरे नाम,
तारीफ़ ज़माने में कर बहुत शर्मिंदा करती है।
..........माँ बहुत झूठ बोलती है।।

भूल भी जाऊँ दुनिया भर के कामों में उलझ,
उसकी दुनिया में वो मुझे कब भूलती है।
मुझ सा सुंदर उसे दुनिया में ना कोई दिखे,
मेरी चिंता में अपने सुख भी किनारे कर देती है।
..........माँ बहुत झूठ बोलती है।।

मन सागर मेरा हो जाए खाली, ऐंसी वो गागर,
जब भी पूछो, अपनी तबियत हरी बोलती है।
उसके "जाये " हैं,  हम भी रग रग जानते हैं।
दुनियादारी में नासमझ, वो भला कहाँ समझती है।
..........माँ बहुत झूठ बोलती है।।

उसके फैलाए सामानों में से जो एक उठा लूँ
खुश होती जैसे, खुद पर उपकार समझती है।
मेरी छोटी सी नाकामयाबी पे उदास होकर,
सोच सोच अपनी तबियत खराब करती है।
..........माँ बहुत झूठ बोलती है।।

" 🙏हर माँ को समर्पित🙏 "

Saturday, January 16, 2016

मा कविता

कहाँ जा रही हो छोड़ कर राह मेँ मुझ इस तरह
अभी तक तो मैँने चलना भी नहीँ
सीखा
अरे मुरझाया हुआ फूल हूँ मैँ तो
अभी तक तो मैँने खिलना भी सीखा
नहीँ
खेल खेल मेँ गिर जाऊँ तो कौन सहारा देगा मुझे
मैँने तो अभी उछलना भी सीखा
नहीँ
चल दी हो तुम कहाँ अकेला कर के मुझे
घर से अकेले अभी तक निकलना भी सीखा
नहीँ
कौन पौँछेगा मेरे आँसू जब भी तेरी याद मेँ रोया तो
अभी तक तो मैँन सम्भलना भी सीखा
नहीँ
देखा कौन अपने आँचल की छाँव इस तपती धूप मेँ तेरे
सिवा
अभी तक मेँ मैँने जलना भी सीखा
नहीँ, मा

Sunday, January 3, 2016

केम मोकले मने ज तुं निशाळे ?

पांदडुं भणे नहीं,झाडवुं भणे नहीं,
कोई नियम के वायरो न पाळे
केम मोकले मने ज तुं निशाळे ?
मा ! केम मोकले मने ज तुं निशाळे..
टहुंकाना ट्युशन क्यां मोरलोय जाय ?
नथी कोयल म्युझिक क्लास भरती, कोई स्विमींग क्लास माछली न
जाय,
तो'य दरियामां रात-दिवस तरती,
बिल्ली ने लेशन नैं डाघुने टेंशन नैं,
काबर तो झूले डाळे डाळे
केम मोकले मने ज तुं निशाळे ? माराथी मोटुं आ दफ्तर थई जाय,
अने दफ्तरमां कांई नथी सारुं,
स्पेलिंग ने पोएम ने मेथ्स ने प्रमेय,
बधुं गोखुं गोखुं ने तो'य हारुं,
दादीनुं व्हाल नहीं स्हेजे तोफान
नहीं पप्पा पण वात बधी टाळे...
केम मोकले मने ज तुं निशाळे ?

Saturday, January 2, 2016

शब्द

"शब्द संभाले बोलिए, शब्द के हाथ न पावं!
"एक शब्द करे औषधि, एक शब्द करे घाव!
.
"शब्द सम्भाले बोलियेे, शब्द खीँचते ध्यान!
"शब्द मन घायल करेँ, शब्द बढाते मान!
.
"शब्द मुँह से छूट गया, शब्द न वापस आय..
"शब्द जो हो प्यार भरा, शब्द ही मन मेँ समाएँ!
.
"शब्द मेँ है भाव रंग का, शब्द है मान महान!
"शब्द जीवन रुप है, शब्द ही दुनिया जहान!

"शब्द ही कटुता रोप देँ, शब्द ही बैर हटाएं!
"शब्द जोङ देँ टूटे मन, शब्द ही प्यार बढाए।।
,,,,👣👣👣,,,,,र.ठाकर,,,,,,,,,,
७ मागशिष २०७२

शिक्षक चालीसा

📝✒📝✒📝✒📝
        शिक्षक चालीसा
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
             दोहा
शिक्षक ज्ञान का सागर, शिक्षक नाम महान।

शिक्षक ही बतलाता है,
है जग में ज्ञान महान।।
👏🏼👏🏼👏🏼👏🏼👏🏼👏🏼
जय जय जय शिक्षा के दाता।
सबको शुभ आशीष प्रदाता ।।1।।

अंधकार के तुम संहारक।
सकल ज्ञान के तुम्हीं प्रचारक ।।2।।

ज्ञान ज्योति को तुम्हीं जलाते।
अज्ञानी का ज्ञान बढ़ाते ।।3।।

मन में सुंदर भाव जगाते।
शिष्यों पर तुम प्यार लुटाते ।।4।।

भक्ति भाव का अलख जगाते।
नेक कर्म करना सिखलाते ।।5।।

चरित्रवान बनना सिखलाते।
मानव धर्म का पाठ पढ़ाते।।6।।

सद्भावों का ज्ञान कराते।
दुख को भी सहना सिखलाते।।7।।

सबके दुख को स्वयं मिटाते।
दीन दुखी को तुम अपनाते ।।8।।

लोभ-मोह को दूर भगाते।
शौर्य वीरता के गुण गाते ।।9।।

सकल विश्व में ज्ञान लुटाते।
शिक्षा का दीपक जलवाते ।।10।।

संयम से रहना सिखलाते।
सबको मुक्ति मार्ग दिखलाते ।।11।।

तुम्हीं हो सद्बुद्धि प्रदाता।
तुम्हीं हो हम सबके दाता ।।12।।

कर्मवान, गुणवान बनाते।
शिक्षा का अधिकार बताते ।।13।।

सुगम-अगम का भेद कराते।
भक्ति भाव का गुण
सिखलाते ।।14।।

शिक्षा की सुगंध फैलाते।
दिग-दिगंत को तुम
महकाते ।।15।।

देश-भक्ति का भाव जगाते।
भारत माँ पर जान लुटाते ।।16।।

अनपढ़ को विद्वान बनाते।
धर्म-धर्म का ज्ञान कराते ।।17।।

वेद और कुरान पढ़ाते।
शिक्षा की तुम ज्योति जलाते ।।18।।

सबको शिक्षा ज्ञान कराते।
शिक्षित कर विद्वान बनाते ।।19।।

तुम्हीं शिक्षा के उन्नायक।
एक तुम्हीं हो ज्ञान प्रदायक
।।20।।

सही गलत का ज्ञान कराते।
शिक्षा का संकल्प दिलाते ।।21।।

देश प्रेम के तुम परिचायक।
एक तुम्हीं हो विश्व विधायक ।।22।।

तुम हो सकल ज्ञान के स्वामी।
सत्यपथ के तुम अनुगामी ।।23।।

तुम्हीं हो यश के अधिकारी। तुम्हीं ज्ञान के परम पुजारी ।।24।।

सदा तुम्हारी जो यश गाते।
वो ही सकल ज्ञान को पाते  ।।25।।

तुम पर है हमको अभिमान। तुम करते हो ज्ञान प्रदान ।।26।।

तुम्हीं हो शिक्षक विज्ञानी।
नहीं तुम्हारा जग में
सानी ।।27।।

तुम्हीं हो राष्ट्र के निर्माता।
उज्जवल भविष्य मार्ग प्रदाता ।।28।।

ज्ञानोदय के तुम हो तपस्वी। धीर-गंभीर तुम्हीं ओजस्वी ।।29।।

चहुँ दिश ज्ञान पुँज फैलाते।
भाईचारा प्रेम सिखाते ।।30।।

सफल-सबल, गतिवान बनाते।
सबमें करूणा भाव जगाते ।।31।।

श्रद्धा-सेवा के भाव जगाते।
ध्यान-योग का मार्ग बताते
।।32।।

सादा जीवन को अपनाते।
निष्ठावान गुणवान बनाते ।।
33।।

सबै मंगलकारी उपासक।
सभ्यता-संस्कृति के तुम
गायक ।।34।।

अहिंसा-सहयोग सिखलाते। प्रेम शांति मार्ग सुझाते ।।35।।

तुम्हरे बिना संसार अधूरा।
तुम ही करते इसको पूरा ।।36।।

सहनशीलता अपरम्पारा।
धरती सम तुम सदा उदारा ।।37।।

सुविचारों के तुम ही पोषक। संयमित जीवन के उद्घोषक ।।38।।

आशावाद के तुम प्रदाता।
सुखमय राष्ट्र के तुम
विधाता ।।39।।

हर युग में परताप तुम्हारा।
तुम से जग में उजियारा ।।
40।।
            दोहा
तुम ज्ञानी हो ज्ञान के, सबको देते ज्ञान।
इसीलिए गुरूवर तुम्हें, करते सभी प्रणाम।।
               
🙏🏻♍🙏🏻♍🙏🏻♍🙏🏻

केलेन्डर कि तरह हम बदलते गये,

केलेन्डर कि तरह हम बदलते गये,
बचपन, जवानी,बुढापा में ढलते गये ।

कुछ पुराने रिश्ते को पीछे छोडते गये,
ओर नये रिश्तों से नाता जोडते गये ।

मिट्टी कि दीवार, घर को गिराते गये,
सीमेन्ट, कोक्रिट से घर को सजाते गये ।

घूल,गाँव, गोबर,खेत पीछे छुटते गये,
शहर कि सडको पे फिर दोडते गये ।

टी.वी ओर बीवी से दुनिया भुलते गये,
अपनो में ही "अपने 'को मिटाते गये ।

मतलब हो वहाँ रिश्ते बनाते गये,
ओर रिश्तों में मतलब निकालते गये ।

दिन,महीने ओर साल बदलते गये,
साथ साथ अपने हाल बदलते गये ।

'सागर " जमाने के साथ तुम बदलते गये,
कलम कि जगह अंगूठे से गजल लिखते गये ।

रोज़ कैलेंडर तारीख बदलता है और आज तारीख कैलेंडर को बदल देगी.

ऐक कहावत सुनी थी समय किसी का सगा नहीं होता है•••......
''रोज़ कैलेंडर तारीख बदलता है और आज तारीख कैलेंडर को बदल देगी.....

🌳🌳
जनवरी - फरवरी 
आपका मंगल करें श्रीहरि 🌳🌳
मार्च - अप्रैल 
धुल जाये मन की मैल 
🌳🌳
मई - जून 
मिले आपको भरपूर सुकून 
🌳🌳
जौलाई - अगस्त 
अच्छे कार्यों में रहो व्यस्त 
🌳🔔🌳🐾🌷🐾
सितम्बर - अक्टूबर 
आप छू लो उन्नति का शिखर 
🐾🌷🐾🌳🔔🌳🐾🌷🐾
नवम्बर - दिसम्बर 
खुशियां आयें आपके घर 
🐾🌷🐾🌳🔔🌳🐾🌷🐾

🌾 आप सभी को हमारी 
तरफ से नये साल की हार्दिक 
बधाई एवं शुभकामनाएं। 2016 में 
सब प्रकार से आन्नद मंगल हो। 
💐🌱💐🌱💐🌱💐🌱💐
Happy new year 
🌹2016 🌹
___________

केलेन्डर कि तरह हम बदलते गये,

केलेन्डर कि तरह हम बदलते गये,
बचपन, जवानी,बुढापा में ढलते गये ।

कुछ पुराने रिश्ते को पीछे छोडते गये,
ओर नये रिश्तों से नाता जोडते गये ।

मिट्टी कि दीवार, घर को गिराते गये,
सीमेन्ट, कोक्रिट से घर को सजाते गये ।

घूल,गाँव, गोबर,खेत पीछे छुटते गये,
शहर कि सडको पे फिर दोडते गये ।

टी.वी ओर बीवी से दुनिया भुलते गये,
अपनो में ही "अपने 'को मिटाते गये ।

मतलब हो वहाँ रिश्ते बनाते गये,
ओर रिश्तों में मतलब निकालते गये ।

दिन,महीने ओर साल बदलते गये,
साथ साथ अपने हाल बदलते गये ।

'सागर " जमाने के साथ तुम बदलते गये,
कलम कि जगह अंगूठे से गजल लिखते गये ।

शिक्षक चालीसा

📝✒📝✒📝✒📝
        शिक्षक चालीसा
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
             दोहा
शिक्षक ज्ञान का सागर, शिक्षक नाम महान।

शिक्षक ही बतलाता है,
है जग में ज्ञान महान।।
👏🏼👏🏼👏🏼👏🏼👏🏼👏🏼
जय जय जय शिक्षा के दाता।
सबको शुभ आशीष प्रदाता ।।1।।

अंधकार के तुम संहारक।
सकल ज्ञान के तुम्हीं प्रचारक ।।2।।

ज्ञान ज्योति को तुम्हीं जलाते।
अज्ञानी का ज्ञान बढ़ाते ।।3।।

मन में सुंदर भाव जगाते।
शिष्यों पर तुम प्यार लुटाते ।।4।।

भक्ति भाव का अलख जगाते।
नेक कर्म करना सिखलाते ।।5।।

चरित्रवान बनना सिखलाते।
मानव धर्म का पाठ पढ़ाते।।6।।

सद्भावों का ज्ञान कराते।
दुख को भी सहना सिखलाते।।7।।

सबके दुख को स्वयं मिटाते।
दीन दुखी को तुम अपनाते ।।8।।

लोभ-मोह को दूर भगाते।
शौर्य वीरता के गुण गाते ।।9।।

सकल विश्व में ज्ञान लुटाते।
शिक्षा का दीपक जलवाते ।।10।।

संयम से रहना सिखलाते।
सबको मुक्ति मार्ग दिखलाते ।।11।।

तुम्हीं हो सद्बुद्धि प्रदाता।
तुम्हीं हो हम सबके दाता ।।12।।

कर्मवान, गुणवान बनाते।
शिक्षा का अधिकार बताते ।।13।।

सुगम-अगम का भेद कराते।
भक्ति भाव का गुण
सिखलाते ।।14।।

शिक्षा की सुगंध फैलाते।
दिग-दिगंत को तुम
महकाते ।।15।।

देश-भक्ति का भाव जगाते।
भारत माँ पर जान लुटाते ।।16।।

अनपढ़ को विद्वान बनाते।
धर्म-धर्म का ज्ञान कराते ।।17।।

वेद और कुरान पढ़ाते।
शिक्षा की तुम ज्योति जलाते ।।18।।

सबको शिक्षा ज्ञान कराते।
शिक्षित कर विद्वान बनाते ।।19।।

तुम्हीं शिक्षा के उन्नायक।
एक तुम्हीं हो ज्ञान प्रदायक
।।20।।

सही गलत का ज्ञान कराते।
शिक्षा का संकल्प दिलाते ।।21।।

देश प्रेम के तुम परिचायक।
एक तुम्हीं हो विश्व विधायक ।।22।।

तुम हो सकल ज्ञान के स्वामी।
सत्यपथ के तुम अनुगामी ।।23।।

तुम्हीं हो यश के अधिकारी। तुम्हीं ज्ञान के परम पुजारी ।।24।।

सदा तुम्हारी जो यश गाते।
वो ही सकल ज्ञान को पाते  ।।25।।

तुम पर है हमको अभिमान। तुम करते हो ज्ञान प्रदान ।।26।।

तुम्हीं हो शिक्षक विज्ञानी।
नहीं तुम्हारा जग में
सानी ।।27।।

तुम्हीं हो राष्ट्र के निर्माता।
उज्जवल भविष्य मार्ग प्रदाता ।।28।।

ज्ञानोदय के तुम हो तपस्वी। धीर-गंभीर तुम्हीं ओजस्वी ।।29।।

चहुँ दिश ज्ञान पुँज फैलाते।
भाईचारा प्रेम सिखाते ।।30।।

सफल-सबल, गतिवान बनाते।
सबमें करूणा भाव जगाते ।।31।।

श्रद्धा-सेवा के भाव जगाते।
ध्यान-योग का मार्ग बताते
।।32।।

सादा जीवन को अपनाते।
निष्ठावान गुणवान बनाते ।।
33।।

सबै मंगलकारी उपासक।
सभ्यता-संस्कृति के तुम
गायक ।।34।।

अहिंसा-सहयोग सिखलाते। प्रेम शांति मार्ग सुझाते ।।35।।

तुम्हरे बिना संसार अधूरा।
तुम ही करते इसको पूरा ।।36।।

सहनशीलता अपरम्पारा।
धरती सम तुम सदा उदारा ।।37।।

सुविचारों के तुम ही पोषक। संयमित जीवन के उद्घोषक ।।38।।

आशावाद के तुम प्रदाता।
सुखमय राष्ट्र के तुम
विधाता ।।39।।

हर युग में परताप तुम्हारा।
तुम से जग में उजियारा ।।
40।।
            दोहा
तुम ज्ञानी हो ज्ञान के, सबको देते ज्ञान।
इसीलिए गुरूवर तुम्हें, करते सभी प्रणाम।।
               
🙏🏻♍🙏🏻♍🙏🏻♍🙏🏻