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Tuesday, December 29, 2015

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं

!! ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् !!
*देवसंस्कृति की माता ... ' गायत्री '
गायत्री माता वेदमाता है ! सारे वेदों का जन्म गायत्री से ही हुआ है ! उसी ने सारी संस्कृति और सभ्यता को जन्म दिया ! अतः गायत्री माता वेदमाता बनी ! इसके बाद गायत्री माता देवमाता बनी ! हिंदुस्तान के निवासी देवता थे ! वे स्वयं तो कम खाते थे , पर दूसरों को अधिक खिलाते थे ! यहाँ के नागरिकों ने सारी दुनियाँ को अपनी संपदा बाँट दी , इसलिए वे देवमानव कहलाए ! अकेले खाते समय उन्हें मन में अप्रसन्नता होती और दूसरों को खिलाते समय वे प्रसन्न होते !
जब गायत्री हमारे ह्रदय में उदय होती है , तो हमारे जीवन को चमकाकर रख देती है ! वह हमारे विचारों में परिवर्तन कर देती है ! हमें केवल अपना परिवार ही नहीं , सारा समाज और देश दिखलाई पड़ता है और हम देवता बनते चले जाते हैं ! गायत्री माता हंस पर बैठकर कमंडल लेकर नहीं आती ! वह करुणा के रूप में , दया के रूप में हमारे अंदर आती है ! यही उसका स्वरुप है , जो हमें देवता बनाकर चला जाता है और हम देवता जैसा जीवन जीने लगते हैं ! गायत्री माता की कृपा से हम लोक-मंगल हेतु अपनी बुद्धि , धन और समय को लगाने लगते हैं ! हमारा जीवन धन्य हो जाता है !
सारे संसार में गायत्री मंत्र का विस्तार हो ! यह मात्र हिन्दुओं तक ही सीमित न रहे , यह ब्राह्मणों का ही न रह जाए , बल्कि विश्वमानव का मंत्र बने ! विश्वमाता से मतलब है की सारा विश्व एक नए आधार पर एक होने जा रहा है ! एक नई संस्कृति आ रही है ! एक नया सार्वभौम धर्म आ रहा है ! सारी दुनियाँ इस एक ही केंद्र के ऊपर इकट्ठी होने जा रही है ! हम सब एक आचारसंहिता और एक मातृभाव में बंधने जा रहे हैं ! गायत्री माता ईमानदारी , नेकनीयती , सज्जनता और शराफत की देवी है ! हंस इसका वाहन है ! गायत्री माता की स्थापना करके हम राजहंस पैदा करना चाहते हैं ! गायत्री उपासकों में राजहंस की वृति पैदा करना चाहते हैं !!
- वेदमूर्ति तपोनिष्ठ युगऋषि श्रीराम

सुख" तू कहाँ मिलता है


ऐ   "सुख"  तू  कहाँ   मिलता   है
क्या  तेरा   कोई  स्थायी  पता है

क्यों   बन   बैठा   है अन्जाना
आखिर   क्या   है   तेरा   ठिकाना।

कहाँ   कहाँ    ढूंढा  तुझको
पर  तू  न  कहीं  मिला  मुझको

ढूंढा  ऊँचे   मकानों  में
बड़ी  बड़ी   दुकानों  में

स्वादिस्ठ   पकवानों  में
चोटी  के  धनवानों  में

वो   भी   तुझको    ढूंढ  रहे   थे
बल्कि   मुझको  ही   पूछ  रहे थे

क्या   आपको   कुछ   पता    है
ये  सुख  आखिर  कहाँ  रहता   है?

मेरे  पास  तो  "दुःख"  का   पता   था
जो   सुबह   शाम अक्सर  मिलता  था

परेशान   होके   रपट    लिखवाई
पर   ये   कोशिश   भी   काम  न  आई

उम्र   अब   ढलान  पे  है
हौसले    थकान  पे    है

हाँ   उसकी  तस्वीर   है   मेरे पास
अब  भी बची   हुई  है    आस

मैं  भी हार    नही    मानूंगा
सुख  के  रहस्य   को जानूंगा

बचपन   में    मिला    करता    था
मेरे    साथ   रहा    करता  था

पर   जबसे   मैं    बड़ा   हो   गया
मेरा  सुख   मुझसे   जुदा   हो  गया।

मैं   फिर   भी   नही   हुआ    हताश
जारी   रखी    उसकी    तलाश

एक  दिन  जब   आवाज  ये    आई
क्या   मुझको   ढूंढ  रहा  है   भाई

मैं  तेरे  अन्दर   छुपा   हुआ    हूँ
तेरे  ही   घर  में  बसा   हुआ  हूँ

मेरा  नही  है   कुछ   भी    "मोल"
सिक्कों   में   मुझको   न तोल

मैं  बच्चों  की  मुस्कानों  में    हूँ
हारमोनियम   की  तानों   में हूँ

पत्नी  के साथ    चाय  पीने में
"परिवार"    के  संग  जीने   में

माँ  बाप   के आशीर्वाद    में
रसोई   घर   के  पकवानो  में

बच्चों  की   सफलता  में   हूँ
माँ   की  निश्छल  ममता  में  हूँ

हर  पल  तेरे  संग    रहता  हूँ
और   अक्सर  तुझसे   कहता  हूँ

मैं   तो   हूँ   बस एक    "अहसास"
बंद  कर   दे   तु मेरी    तलाश

जो   मिला   उसी  में  कर   "संतोष"
आज  को  जी  ले  कल  की न सोच

कल  के   लिए  आज  को  न   खोना

मेरे  लिए   कभी   दुखी   न    होना |
मेरे  लिए   कभी   दुखी   न    होना |

Friday, December 25, 2015

कोक खूणे ओळखीता निकळे

शब्द एक शोधो त्यां संहिता निकळे
कुवो खोदो तो आखी सरिता निकळे

हजु जो जनक जेवा आवी हळ हांके
तो हजी आ धरतीमांथी सीता निकळे

हजु धबके छे क्यांक लक्ष्मण रेखाओ
के रावण जेवा त्यांथी बीता-बीता निकळे

छे कालिदास ने भोजना खंडेरो
जरीक खोतरो त्यां कविता निकळे

छे कृष्णनी वांसळीना ए कटका
के होठे मांडो तो सुर-सरिता निकळे

साव अलग ज तासीर छे आ भुमिनी
के महाभारत वावो तो गीता निकळेे

दत्त जोगी जेवानी जो फूंक लागे तो
हजु धूणा तपना धखता निकळे

'दाद'आम तो नगर छे साव अजाण्युं
तोय कोक खूणे ओळखीता निकळे

- कवि दाद

प्रेम ऐटले शु?

Tuesday, December 22, 2015

जिन्दगी का एक ओर वर्ष कम हो चला,

जिन्दगी का एक ओर वर्ष कम हो चला,
कुछ पुरानी यादें पीछे छोड़ चला..

कुछ ख्वाईशैं दिल मे रह जाती हैं..
कुछ बिन मांगे मिल जाती हैं ..

कुछ छोड़ कर चले गये..
कुछ नये जुड़ेंगे इस सफर मे ..

कुछ मुझसे बहुत खफा हैं..
कुछ मुझसे बहुत खुश हैं..

कुछ मुझे मिल के भूल गये..
कुछ मुझे आज भी याद करते हैं..

कुछ शायद अनजान हैं..
कुछ बहुत परेशान हैं..

कुछ को मेरा इंतजार हैं ..
कुछ का मुझे इंतजार है..

कुछ सही है
कुछ गलत भी है.
कोई गलती तो माफ कीजिये और
कुछ अच्छा लगे तो याद कीजिये।

Tuesday, December 15, 2015

ई पाठशाला मोबाइल एप

अब मोबाइल पर पढ़िए NCERT की सारी किताबें, एप लॉन्च ⤵⤵

APPLICATION DOWNLOAD CLICK HERE.

अब मोबाइल पर पढ़िए पहली से बारहवीं तक की किताबें
एनसीईआरटी की पहली से लेकर बारहवीं कक्षा तक की सभी किताबें मोबाइल फोन एप्लीकेशन प्लेटफार्र्म पर उपलब्ध हो गई हैं। केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय ने ई पाठशाला नाम से मोबाइल फोन एप और वेबसाइट पोर्टल लांच कर दिया है। इस एप के जरिये एनसीईआरटी की किताबों को मुफ्त में डाउनलोड़ किया जा सकेगा।

हिंदी और अंग्रेजी दोनों विषयों में सभी विषयों की किताबें उपलब्ध होंगी। पीडीएफ फारमेट में हर विषय की चैप्टर वाइज किताबें को डाउनलोड़ किया जा सकेगा। मोबाइल फोन एप लांच होने से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियों के लिए भी राह आसान हो गई है। वेबसाइट पोर्टल के माध्यम से कंप्यूटर सिस्टम पर भी किताबों को डाउनलोड़ किया जा सकेगा।

एनसीईआरटी की किताबों की तलाश में अब भटकने की जरूरत नहीं है। इंटरनेट कनेक्शन से जुड़े मोबाइल फोन के एक क्लिक पर कक्षा एक से लेकर जमा दो तक की किताबों को आसानी से डाउनलोड किया जा सकता है। इन किताबों को डाउनलोड कर आफ लाइन (बिना इंटरनेट कनेक्शन) भी पढ़ा जा सकता है। प्रिंट आउट निकाल कर किताबों को बाइंड भी करवा सकते हैं।

एनसीईआरटी की किताबों को डाउनलोड करने में सिर्फ इंटरनेट का खर्च आएगा। अन्य कोई भी पैसा इसके लिए नहीं चुकाना पड़ेगा। इन किताबों को पढ़ने के लिए मोबाइल फोन पर पीडीएफ फाइल रीडर होना आवश्यक है। पढ़ाई को रोचक और आसान बनाने के लिए यह सुविधा दी गई है।

प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए भी उपयोगी
डाउनलोड की गई किताबें लंबे समय तक प्रयोग में लाई जा सकती है। किताबों को अलमारी में सहेज कर रखने की दिक्कत भी इस सुविधा से दूर होगी।एनसीईआरटी की किताबें विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियों में जुटे छात्रों के लिए भी लाभदायक हैं। दसवीं से जमा दो कक्षा की किताबों को आनलाइन पढ़ कर छात्र यूपीएसई, एसएससी, पीसीएस, आईएएस, एचएएस सहित बैंकों की परीक्षाओं की तैयारी कर सकते हैं।

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने सात नवंबर को ई पाठशाला मोबाइल एप, वेबसाइट पोर्टल का शुभारंभ किया। विद्यालय शिक्षा में आईसीटी पर राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान इसे लांच किया गया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिजिटल इंडिया की नई पहल के तहत मोबाइल फोन एप की सुविधा दी गई है।

Wednesday, December 9, 2015

जानिए महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित 18 पुराणों के बारें में

जानिए महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित 18 पुराणों के बारें में -
पुराण शब्द का अर्थ है प्राचीन कथा। पुराण विश्व साहित्य के प्रचीनत्म ग्रँथ हैं।

उन में लिखित ज्ञान और नैतिकता की बातें आज भी प्रासंगिक, अमूल्य तथा मानव सभ्यता की आधारशिला हैं। वेदों की भाषा तथा शैली कठिन है। पुराण उसी ज्ञान के सहज तथा रोचक संस्करण हैं।

उन में जटिल तथ्यों को कथाओं के माध्यम से समझाया गया है। पुराणों का विषय नैतिकता, विचार, भूगोल, खगोल, राजनीति, संस्कृति, सामाजिक परम्परायें, विज्ञान तथा अन्य विषय हैं।

महृर्षि वेदव्यास ने 18 पुराणों का संस्कृत भाषा में संकलन किया है। ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश उन पुराणों के मुख्य देव हैं। त्रिमूर्ति के प्रत्येक भगवान स्वरूप को छः  पुराण समर्पित किये गये हैं। आइए जानते है 18 पुराणों के बारे में।

1.ब्रह्म पुराण 
ब्रह्म पुराण सब से प्राचीन है। इस पुराण में 246 अध्याय  तथा 14000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में ब्रह्मा की महानता के अतिरिक्त सृष्टि की उत्पत्ति, गंगा आवतरण तथा रामायण और कृष्णावतार की कथायें भी संकलित हैं।

इस ग्रंथ से सृष्टि की उत्पत्ति से लेकर सिन्धु घाटी सभ्यता तक की कुछ ना कुछ जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

2.पद्म पुराण
पद्म पुराण में 55000 श्र्लोक हैं और यह ग्रंथ पाँच खण्डों में विभाजित है जिन के नाम सृष्टिखण्ड, स्वर्गखण्ड, उत्तरखण्ड, भूमिखण्ड तथा पातालखण्ड हैं। इस ग्रंथ में पृथ्वी आकाश, तथा नक्षत्रों की उत्पति के बारे में उल्लेख किया गया है।

चार प्रकार से जीवों की उत्पत्ति होती है जिन्हें उदिभज, स्वेदज, अणडज तथा जरायुज की श्रेणा में रखा गया है। यह वर्गीकरण पुर्णत्या वैज्ञायानिक है। भारत के सभी पर्वतों तथा नदियों के बारे में भी विस्तरित वर्णन है।

इस पुराण में शकुन्तला दुष्यन्त से ले कर भगवान राम तक के कई पूर्वजों का इतिहास है। शकुन्तला दुष्यन्त के पुत्र भरत के नाम से हमारे देश का नाम जम्बूदीप से भरतखण्ड और पश्चात भारत पडा था।

3.विष्णु पुराण
विष्णु पुराण में 6 अँश तथा 23000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में भगवान विष्णु, बालक ध्रुव, तथा कृष्णावतार की कथायें संकलित हैं। इस के अतिरिक्त सम्राट पृथु की कथा भी शामिल है जिस के कारण हमारी धरती का नाम पृथ्वी पडा था।

इस पुराण में सू्र्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं का इतिहास है। भारत की राष्ट्रीय पहचान सदियों पुरानी है जिस का प्रमाण विष्णु पुराण के निम्नलिखित शलोक में मिलता हैः

उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तद भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः।
(साधारण शब्दों में इस का अर्थ है कि वह भूगौलिक क्षेत्र जो उत्तर में हिमालय तथा दक्षिण में सागर से घिरा हुआ है भारत देश है तथा उस में निवास करने वाले सभी जन भारत देश की ही संतान हैं।) भारत देश और भारत वासियों की इस से स्पष्ट पहचान और क्या हो सकती है? विष्णु पुराण वास्तव में ऐक ऐतिहासिक ग्रंथ है।

4.शिव पुराण
शिव पुराण में 24000 श्र्लोक हैं तथा यह सात संहिताओं में विभाजित है। इस ग्रंथ में भगवान शिव की महानता तथा उन से सम्बन्धित घटनाओं को दर्शाया गया है। इस ग्रंथ को वायु पुराण भी कहते हैं।

इस में कैलाश पर्वत, शिवलिंग तथा रुद्राक्ष का वर्णन और महत्व, सप्ताह के दिनों के नामों की रचना, प्रजापतियों तथा काम पर विजय पाने के सम्बन्ध में वर्णन किया गया है। सप्ताह के दिनों के नाम हमारे सौर मण्डल के ग्रहों पर आधारित हैं और आज भी लगभग समस्त विश्व में प्रयोग किये जाते हैं।

5.भागवत पुराण
भागवत पुराण में 18000 श्र्लोक हैं तथा 12 स्कंध हैं। इस ग्रंथ में अध्यात्मिक विषयों पर वार्तालाप है। भक्ति, ज्ञान तथा वैराग्य की महानता को दर्शाया गया है। विष्णु और कृष्णावतार की कथाओं के अतिरिक्त महाभारत काल से पूर्व के कई राजाओं, ऋषि मुनियों तथा असुरों की कथायें भी संकलित हैं।

इस ग्रंथ में महाभारत युद्ध के पश्चात श्रीकृष्ण का देहत्याग, द्वारिका नगरी के जलमग्न होने और यदु वंशियों के नाश तक का विवरण भी दिया गया है।

6.नारद पुराण
नारद पुराण में 25000 श्र्लोक हैं तथा इस के दो भाग हैं। इस ग्रंथ में सभी 18 पुराणों का सार दिया गया है। प्रथम भाग में मन्त्र तथा मृत्यु पश्चात के क्रम आदि के विधान हैं। गंगा अवतरण की कथा भी विस्तार पूर्वक दी गयी है।

दूसरे भाग में संगीत के सातों स्वरों, सप्तक के मन्द्र, मध्य तथा तार स्थानों, मूर्छनाओं, शुद्ध एवं कूट तानो और स्वरमण्डल का ज्ञान लिखित है। संगीत पद्धति का यह ज्ञान आज भी भारतीय संगीत का आधार है।

जो पाश्चात्य संगीत की चकाचौंध से चकित हो जाते हैं उन के लिये उल्लेखनीय तथ्य यह है कि नारद पुराण के कई शताब्दी पश्चात तक भी पाश्चात्य संगीत में केवल पाँच स्वर होते थे तथा संगीत की थ्योरी का विकास शून्य के बराबर था। मूर्छनाओं के आधार पर ही पाश्चात्य संगीत के स्केल बने हैं।

7.मार्कण्डेय पुराण
अन्य पुराणों की अपेक्षा यह छोटा पुराण है। मार्कण्डेय पुराण में 9000 श्र्लोक तथा 137 अध्याय हैं। इस ग्रंथ में सामाजिक न्याय और योग के विषय में ऋषिमार्कण्डेय तथा ऋषि जैमिनि के मध्य वार्तालाप है। इस के अतिरिक्त भगवती दुर्गा तथा श्रीक़ृष्ण से जुड़ी हुयी कथायें भी संकलित हैं।

8.अग्नि पुराण
अग्नि पुराण में 383 अध्याय तथा 15000 श्र्लोक हैं। इस पुराण को भारतीय संस्कृति का ज्ञानकोष (इनसाईक्लोपीडिया) कह सकते है। इस ग्रंथ में मत्स्यावतार, रामायण तथा महाभारत की संक्षिप्त कथायें भी संकलित हैं।

इस के अतिरिक्त कई विषयों पर वार्तालाप है जिन में धनुर्वेद, गान्धर्व वेद तथा आयुर्वेद मुख्य हैं। धनुर्वेद, गान्धर्व वेद तथा आयुर्वेद को उप-वेद भी कहा जाता है।

9.भविष्य पुराण
भविष्य पुराण में 129 अध्याय तथा 28000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में सूर्य का महत्व, वर्ष के 12 महीनों का निर्माण, भारत के सामाजिक, धार्मिक तथा शैक्षिक विधानों आदि कई विषयों पर वार्तालाप है। इस पुराण में साँपों की पहचान, विष तथा विषदंश सम्बन्धी महत्वपूर्ण जानकारी भी दी गयी है।

इस पुराण की कई कथायें बाईबल की कथाओं से भी मेल खाती हैं। इस पुराण में पुराने राजवँशों के अतिरिक्त भविष्य में आने वाले  नन्द वँश, मौर्य वँशों, मुग़ल वँश, छत्रपति शिवा जी और महारानी विक्टोरिया तक का वृतान्त भी दिया गया है।

ईसा के भारत आगमन तथा मुहम्मद और कुतुबुद्दीन ऐबक का जिक्र भी इस पुराण में दिया गया है। इस के अतिरिक्त विक्रम बेताल तथा बेताल पच्चीसी की कथाओं का विवरण भी है। सत्य नारायण की कथा भी इसी पुराण से ली गयी है।

10.ब्रह्म वैवर्त पुराण
ब्रह्माविवर्ता पुराण में 18000 श्र्लोक तथा 218 अध्याय हैं। इस ग्रंथ में ब्रह्मा, गणेश, तुल्सी, सावित्री, लक्ष्मी, सरस्वती तथा क़ृष्ण की महानता को दर्शाया गया है तथा उन से जुड़ी हुयी कथायें संकलित हैं। इस पुराण में आयुर्वेद सम्बन्धी ज्ञान भी संकलित है।

11.लिंग पुराण
लिंग पुराण में 11000 श्र्लोक और 163 अध्याय हैं। सृष्टि की उत्पत्ति तथा खगौलिक काल में युग, कल्प आदि की तालिका का वर्णन है।

राजा अम्बरीष की कथा भी इसी पुराण में लिखित है। इस ग्रंथ में अघोर मंत्रों तथा अघोर विद्या के सम्बन्ध में भी उल्लेख किया गया है।

12.वराह पुराण
वराह पुराण में 217 स्कन्ध तथा 10000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में वराह अवतार की कथा के अतिरिक्त भागवत गीता महामात्या का भी विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। इस पुराण में सृष्टि के विकास, स्वर्ग, पाताल तथा अन्य लोकों का वर्णन भी दिया गया है।

श्राद्ध पद्धति, सूर्य के उत्तरायण तथा दक्षिणायन विचरने, अमावस और पूर्णमासी के कारणों का वर्णन है। महत्व की बात यह है कि जो भूगौलिक और खगौलिक तथ्य इस पुराण में संकलित हैं वही तथ्य पाश्चात्य जगत के वैज्ञिानिकों को पंद्रहवी शताब्दी के बाद ही पता चले थे।

13.स्कन्द पुराण
स्कन्द पुराण सब से विशाल पुराण है तथा इस पुराण में 81000 श्र्लोक और छः खण्ड हैं। स्कन्द पुराण में प्राचीन भारत का भूगौलिक वर्णन है जिस में 27 नक्षत्रों, 18 नदियों, अरुणाचल प्रदेश का सौंदर्य, भारत में स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों, तथा गंगा अवतरण के आख्यान शामिल हैं।

इसी पुराण में स्याहाद्री पर्वत श्रंखला तथा कन्या कुमारी मन्दिर का उल्लेख भी किया गया है। इसी पुराण में सोमदेव, तारा तथा उन के पुत्र बुद्ध ग्रह की उत्पत्ति की अलंकारमयी कथा भी है।

14.वामन पुराण
वामन पुराण में 95 अध्याय तथा 10000 श्र्लोक तथा दो खण्ड हैं। इस पुराण का केवल प्रथम खण्ड ही उपलब्ध है।

इस पुराण में वामन अवतार की कथा विस्तार से कही गयी हैं जो भरूचकच्छ (गुजरात) में हुआ था। इस के अतिरिक्त इस ग्रंथ में भी सृष्टि, जम्बूदूीप तथा अन्य सात दूीपों की उत्पत्ति, पृथ्वी की भूगौलिक स्थिति, महत्वशाली पर्वतों, नदियों तथा भारत के खण्डों का जिक्र है।

15.कुर्मा पुराण
कुर्मा पुराण में 18000 श्र्लोक तथा चार खण्ड हैं। इस पुराण में चारों वेदों का सार संक्षिप्त रूप में दिया गया है। कुर्मा पुराण में कुर्मा अवतार से सम्बन्धित सागर मंथन की कथा  विस्तार पूर्वक लिखी गयी है।

इस में ब्रह्मा, शिव, विष्णु, पृथ्वी, गंगा की उत्पत्ति, चारों युगों, मानव जीवन के चार आश्रम धर्मों, तथा चन्द्रवँशी राजाओं के बारे में भी वर्णन है।

16.मतस्य पुराण
मतस्य पुराण में 290 अध्याय तथा 14000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में मतस्य अवतार की कथा का विस्तरित उल्लेख किया गया है। सृष्टि की उत्पत्ति हमारे सौर मण्डल के सभी ग्रहों, चारों युगों तथा चन्द्रवँशी राजाओं का इतिहास वर्णित है। कच, देवयानी, शर्मिष्ठा तथा राजा ययाति की रोचक कथा भी इसी पुराण में है

17.गरुड़ पुराण
गरुड़ पुराण में 279 अध्याय तथा 18000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में मृत्यु पश्चात की घटनाओं, प्रेत लोक, यम लोक, नरक तथा 84 लाख योनियों के नरक स्वरुपी जीवन आदि के बारे में विस्तार से बताया गया है।

इस पुराण में कई सूर्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं का वर्णन भी है। साधारण लोग इस ग्रंथ को पढ़ने से हिचकिचाते हैं क्योंकि इस ग्रंथ को किसी परिचित की मृत्यु होने के पश्चात ही पढ़वाया जाता है।

वास्तव में इस पुराण में मृत्यु पश्चात पुनर्जन्म होने पर गर्भ में स्थित भ्रूण की वैज्ञानिक अवस्था सांकेतिक रूप से बखान की गयी है जिसे वैतरणी नदी आदि की संज्ञा दी गयी है।समस्त यूरोप में उस समय तक भ्रूण के विकास के बारे में कोई भी वैज्ञानिक जानकारी नहीं थी।

18.ब्रह्माण्ड पुराण
ब्रह्माण्ड पुराण में 12000 श्र्लोक तथा पू्र्व, मध्य और उत्तर तीन भाग हैं। मान्यता है कि अध्यात्म रामायण पहले ब्रह्माण्ड पुराण का ही एक अंश थी जो अभी एक पृथक ग्रंथ है। इस पुराण में ब्रह्माण्ड में स्थित ग्रहों के बारे में वर्णन किया गया है।

कई सूर्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं का इतिहास भी संकलित है। सृष्टि की उत्पत्ति के समय से ले कर अभी तक सात मनोवन्तर (काल) बीत चुके हैं जिन का विस्तरित वर्णन इस ग्रंथ में किया गया है। परशुराम की कथा भी इस पुराण में दी गयी है। इस ग्रँथ को विश्व का प्रथम खगोल शास्त्र कह सकते है।

भारत के ऋषि इस पुराण के ज्ञान को इण्डोनेशिया भी ले कर गये थे जिस के प्रमाण इण्डोनेशिया की भाषा में मिलते है।.

Monday, December 7, 2015

सर्दी बुलेटिन

मौसम का एहतेराम करते हुए एक जरूरी सूचना:-

🌷अत्यधिक ठंड की स्थिती में "सुप्रभात" संदेश प्रातः 11 से दोपहर 3.00बजे तक स्वीकार्य है,
साथ ही "शुभरात्री" के संदेश 6.00बजे से रात्री 9 बजे तक मान्य किये जायेंगे😳😃😂

🌷बड़ी बेवफ़ा हो जाती है ग़ालिब, ये घड़ी भी सर्दियों में,
5 मिनट और सोने की सोचो तो, 30 मिनट आगे बढ़ जाती है 😳😃😂

🌷सर्दी ने अब पकड बनाई, अगल बगल से जकड रजाई,
धुंध में सूरज नहीं है दिखने वाला, घडी की घंटी से उठ जा भाई😄😳😂

🌷मत ढूंढो मुझे इस दुनिया की तन्हाई में,
ठण्ड बहुत है, मैं यही हूँ, अपनी रजाई में😝😄😁

🌷तमाम राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं के बीच मेरी छोटी सी लोकल समस्या
सारी रात गुज़र जाती है इसी कश्मकश में ये रजाई में हवा कहां से घुस रही है😄😜😳

🌷सुबह सुबह आकर सोये हुए को जगाने के लिये उसकी रजाई खींच लेने को महापाप की श्रेणी में रखा जायेगा😂😁😃

🌷अगर इस समय कोई सुबह सुबह किसी पर ठंडा पानी डाल दे तो वो घटना भी आतंकवादी हमले के अंतर्गत माना जायेगा😃😳😂

🌷किसी की रजाई खींचना विद्रोह के बराबर माना जायेगा और रजाई में घुसकर ठंडे पैर लगाना छेड़छाड़ का अपराध माना जायेगा😜😁😳

🌷अर्ज किया है:
हुआ अपहरण धूप का,
पूरी जनता मौन,
कोहरा थानेदार है,
रपट लिखाए कौन😃😜😳

🌷इस बरसाती ठण्ड के मौसम में रजाई के अंदर रहना ही श्रेष्ठ कर्म है
और टमाटर की चटनी के साथ पकोड़े, चाय मिलना मोक्ष की प्राप्ति😜😃😳

🌷ऐ सर्दी इतना न इतरा
अगर हिम्मत है तो जून में आ😄😜😃

🌷आखिर अब वो समय आ ही गया है जब हम सुबह उठ कर
ज़िन्दगी का सबसे मुश्किल फैंसला करते हैं कि
  आज नहाना है या नही ??😁😢😳

"सर्दी बुलेटिन समाप्त हुआ"

Saturday, December 5, 2015

शिक्षक की गोद में उत्थान पलता है।

शिक्षक की गोद में उत्थान पलता है।
सारा जहां शिक्षक के पिछे ही चलता है।
शिक्षक का बोया हुआ पेड़ बनता है।
वही पेड़ हजारो बीज जनता है।
शिक्षक काल की गति को मोड़ सकता है।
शिक्षक धरा से अम्बर को जोड़ सकता है।
शिक्षक की महिमा महान होती है।
शिक्षक बिन अधूरी हूँ वसुन्धरा कहती है।
याद रखो चाणक्य ने इतिहास बना डाला था।
क्रूर मगध राजा को मिटटी में मिला डाला था।
बालक चन्द्रगुप्त को चक्रवर्ती सम्राट बनाया था।
संदीपनी जैसे गुरु सदियों से होते आये है।
कृष्ण जैसे नन्हे नन्हे बिज बोते आये है।
शिक्षक से ही अर्जुन और युधिष्ठिर जैसे नाम है।
शिक्षक की निंदा करने से दुर्योधन बदनाम है।
शिक्षक की ही दया दृष्टि से बालक राम बन जाते है।
शिक्षक की अनदेखी से वो रावण भी कहलाते है।
हम सब ने भी शिक्षक बनने का सुअवसर पाया है।
बहुत बड़ी जिम्मेदारी को हमने गले लगाया है।
आओ हम संकल्प करे की अपना फ़र्ज निभायेगे।
अपने प्यारे भारत को हम जगतगुरु बनायेगे।
अपने शिक्षक होने का हरपल अभिमान करेंगे ।
इस समाज में हम भी अपना शिक्षा दान  करेंगे ।
क्योंकि...



माना अँधेरा  घना है।
पर दीप जलाना कहा मना है...।