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Sunday, November 29, 2015

सज्जन व्यक्तियों

श्रोत्रं श्रुतेनैव न कुंडलेन ,

दानेन पाणिर्न तु कंकणेन ,

विभाति कायः करुणापराणां ,

परोपकारैर्न तु चन्दनेन ||

अर्थात् :कानों की शोभा कुण्डलों से नहीं अपितु ज्ञान की बातें सुनने से होती है | हाथ दान करने से सुशोभित होते हैं न कि कंकणों

से | दयालु / सज्जन व्यक्तियों का शरीर चन्दन से नहीं बल्कि दूसरों का हित करने से शोभा पाता है |

ह्रदय ने बंध थवा मां वार नथी लागती. !!!

👤  मुंजाय छे शुं मन मां,
       समय जता वार नथी लागती.

       रही जशे मन नी मनमां,
       ए वात आजे साची नथी लागती.

       कोने खबर छे,
       कांकरा ने रेती मां बदलाता
       वार नथी लागती.

       क्षितिज ने जोऊं छूं ज्यारे,
       सूर्यास्त ने सांज थता वार नथी लागती.

       राग द्वेष काढी प्रेम थी जीवन
       जीवी लेजो,
       ह्रदय ने बंध थवा मां वार नथी लागती. !!!

भुलो भले बीजुं बधु, पण घरवाली ने भुलशो नही,

भुलो भले बीजुं बधु,,,,
पण घरवाली ने भुलशो नही,,,,
अगणित उपकार छे एना,,,
ए कदी विसरसो नहीं,,,
खाई पोते "वासी"
अने,,,,,
खवडावयु fresh तमने,,,,,
तमारी Health साचवनारनुं,,,
Heart कदी तोड़ो नहीं,,,,
धीरे धीरे जमा करयु धन,,,,,
जेणे तमारा Account मां,,,,
तमारी "बेंक बेलेंस"  वधारनारने,,,
CREDIT आपवानुं भुलशो नही,,,,,,
धन खर्चता मलशे बधु,,,
घरवाली कदी मलशे नहीं,,,,
पोताना संतानों ने,,,,,
"पारकी मां" ना हाथा मा सोंपसे नहीं,,,,
           माटे,,,,,,,,,,,,
भूलो भले बीजुं बधु,,,,,, पण घरवाली ने भुलशो नहीं,,,,,,,,,,,,,,

Saturday, November 28, 2015

शिक्षक से पूछा - क्या करते हो ??

किसी ने साधारण से दिखने वाले शिक्षक से पूछा - क्या करते हो ??

शिक्षक का सुन्दर जवाब देखिए ।

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सुन्दर सुर सजाने को साज बनाता हूँ ।
नौसिखिये परिंदों को बाज बनाता हूँ ।।

चुपचाप सुनता हूँ शिकायतें सबकी ।
तब दुनिया बदलने की आवाज बनाता हूँ ।।

समंदर तो परखता है हौंसले कश्तियों के ।
और मैं डूबती कश्तियों को जहाज बनाता हूँ ।।

बनाए चाहे चांद पे कोई बुर्ज ए खलीफा ।
अरे मैं तो कच्ची ईंटों से ही ताज बनाता हूँ ।।

ढूँढों मेरा मजहब जाके इन किताबों में ।
मै तो उन्हीं से आरती नमाज बनाता हूँ ।।

न मुझसे सीखने आना कभी जंतर जुगाड़ के ।
अरे मैं तो मेहनत लगन के रिवाज बनाता हूं ।।

नजुमी - ज्योतिषी छोड़ दो तारों को तकना तुम।
है जो आने वाला कल उसे मैं आज बनाता हूँ ।।

♦♦♦मेरे सभी शिक्षक मित्रो को समर्पित♦♦♦

Wednesday, November 25, 2015

आखिर मैं कौन हूँ

स्त्तब्ध हूँ हैरान हू 
बिल्कुल ही मौन हूँ
कौई मुझे बताऐ 
आखिर मैं कौन हूँ
न काम का पता है
और न नाम का पता
करना है क्या मुझे नहीं
इसका भी है पता
कल क्या नया फरमान हो
मै भी न जानता हूँ
जिस दिन जो कहा जाए
मै उसको मानता हूँ
खुद जानता नहीं मै
आधा या पौन हूँ
कौई मुझे बताए 
आखिर मै कौन हूँ
मध्यान्ह की व्यवस्था
मुझको ही देखना है
गलती है किसी और की
मुझको ही भोगना है
स्व सहायता समूह की
ये कैसी भागीदारी
भोजन में जोंक निकले
मेरी ही जिम्मेदारी
शिक्षक हूँ या रसोइया
न जाने कौन हूँ
कौई मुझे बताऐ 
आखिर मैं कौन हूँ
समग्र स्वच्छता में
मैं ही हूं जिम्मेदार
गंदा न हो शौचालय
ये भी है मुझ पे भार
कक्षा में बाट जोहते
मेरे देश के नौनिहाल
हे राष्ट्र के निर्माता
कर दो मेरा उद्धार
आदमी हूँ में या 
जिन्नों का क्लोन हूं
कौई मुझे बताऐ 
आखिर मैं कौन हूँ
सम्मान था आभिमान था
शिक्षा ही काम था
आदर सभी से मिलता था
शिक्षक ही नाम था
हर पल नई खबर है
नई जानकारिया
अब लाइलाज हो गई
मेरी बीमारियां
शिक्षक तो अब रहा नहीं
मैं टेलीफोन हूँ
कौई मुझे बताऐ 
आखिर मैं कौन हूँ

Monday, November 23, 2015

हर दोस्त "कोहिनूर" होता है।

पानी से तस्वीर
            कहा बनती है,
ख्वाबों से तकदीर
            कहा बनती है,
किसी भी रिश्ते को
            सच्चे दिल से निभाओ,
ये जिंदगी फिर
            वापस कहा मिलती है
कौन किस से
            चाहकर दूर होता है,
हर कोई अपने
            हालातों से मजबूर होता है,
हम तो बस
            इतना जानते हैं...
हर रिश्ता "मोती" और
            हर दोस्त "कोहिनूर" होता है।।।

Wednesday, November 18, 2015

चलो मिलने का कोई प्लान बनाते है

जिम्मेदारियां मजबूर कर देती हैं,
अपना "शहर" छोड़ने को !!

वरना कौन अपनी गली में,
जीना नहीं चाहता ।।।

हसरतें आज भी,
"खत" लिखती हैं मुझे,

बेखबर इस बात से कि,,
मैं अब अपने "पते" पर नहीं रहता !!!

एक वक्त ऐसा था..दोस्त बोलते थे-

"चलो,मिलकर कुछ प्लान बनाते हैं"

और अब बोलते है-
"चलो मिलने का कोई प्लान बनाते है"

Monday, November 16, 2015

तू भी इन्सान होता, मैं भी इन्सान होता।

ना मस्जिद आजान देती, ना मंदिर के घंटे बजते

ना अल्ला का शोर होता, ना राम नाम भजते

ना हराम होती, रातों की नींद अपनी
मुर्गा हमें जगाता, सुबह के पांच बजते

ना दीवाली होती, और ना पठाखे बजते
ना ईद की अलामत, ना बकरे शहीद होते

तू भी इन्सान होता, मैं भी इन्सान होता,
…….काश कोई धर्म ना होता....
…….काश कोई मजहब ना होता....

ना अर्ध देते , ना स्नान होता
ना मुर्दे बहाए जाते, ना विसर्जन होता

जब भी प्यास लगती , नदिओं का पानी पीते
पेड़ों की छाव होती , नदिओं का गर्जन होता

ना भगवानों की लीला होती, ना अवतारों
का
नाटक होता
ना देशों की सीमा होती , ना दिलों का
फाटक
होता

तू भी इन्सान होता, मैं भी इन्सान होता,
…….काश कोई धर्म ना होता.....
…….काश कोई मजहब ना होता....

कोई मस्जिद ना होती, कोई मंदिर ना होता
कोई दलित ना होता, कोई काफ़िर ना
होता

कोई बेबस ना होता, कोई बेघर ना होता
किसी के दर्द से कोई, बेखबर ना होता

ना ही गीता होती , और ना कुरान होता
ना ही अल्ला होता, ना भगवान होता

तुझको जो जख्म होता, मेरा दिल तड़पता.
ना हिन्दू होता, ना मुसलमान होता

तू भी इन्सान होता, मैं भी इन्सान होता।

–हरिवंशराय बच्चन
।। ।।

Saturday, November 14, 2015

गिजुभाई बधेका

गिजुभाई बधेका (15 नवम्बर 1885 - 23 जून 1939)) गुजराती भाषा के लेखक और महान शिक्षाशास्त्री थे। उनका पूरा नाम गिरिजाशंकर भगवानजी बधेका था। अपने प्रयोगों और अनुभव के आधार पर उन्होंने निश्चय किया था कि बच्चों के सही विकास के लिए, उन्हें देश का उत्तम नागरिक बनाने के लिए, किस प्रकार की शिक्षा देनी चाहिए और किस ढंग से। इसी ध्येय को सामने रखकर उन्होंने बहुत-सी बालोपयोगी कहानियां लिखीं। ये कहानियां गुजराती दस पुस्तकों में प्रकाशित हुई हैं। इन्हीं कहानियां का हिन्दी अनुवाद सस्ता साहित्य मण्डल, नई दिल्ली ने पांच पुस्तकों में प्रकाशित किया है।

बच्चे इन कहानियों को चाव से पढ़ें, उन्हें पढ़ते या सुनते समय, उनमें लीन हो जाएं, इस बात का उन्होंने पूरा ध्यान रखा। संभव- असंभव, स्वाभाविक-अस्वाभाविक, इसकी चिन्ता उन्होंने नहीं की। यही कारण है कि इन कहानियों की बहुत-सी बातें अनहोनी-सी लगती हैं, पर बच्चों के लिए तो कहानियों में रस प्रधान होता है, कुतूहल महत्व रखता है और ये दोनों ही चीजें इन कहानियों में भरपूर हैं।

Friday, November 13, 2015

हरिवंशराय बच्चन जी की एक खूबसूरत कविता.

"रब"  ने.  नवाजा   हमें.  जिंदगी.  देकर;
और.  हम.  "शौहरत"  मांगते   रह   गये;

जिंदगी  गुजार  दी  शौहरत.  के  पीछे;
फिर   जीने   की  "मौहलत"   मांगते   रह गये।

ये   कफन ,  ये.  जनाज़े,   ये   "कब्र" सिर्फ.  बातें   हैं.  मेरे   दोस्त,,,
वरना   मर   तो   इंसान   तभी   जाता  है जब  याद  करने  वाला  कोई   ना. हो...!!

ये  समंदर   भी.  तेरी   तरह.  खुदगर्ज़ निकला,
ज़िंदा.  थे.  तो.  तैरने.  न.  दिया.  और मर.  गए   तो   डूबने.  न.  दिया . .

क्या.  बात   करे   इस   दुनिया.  की
"हर.  शख्स.  के   अपने.  अफसाने.  हे"

जो   सामने.  हे.  उसे   लोग.  बुरा   कहते.  हे,
जिसको.  कभी देखा.  नहीं   उसे   सब   "खुदा".  कहते.   है....

Friday, November 6, 2015

क्या करता है शिक्षक... जवाब है यह कविता.


अधूरे सुर सजाने को साज बनाता हूँ
नौसिखिये परिंदों को बाज बनाता हूँ
चुपचाप सुनता हूँ शिकायतें सबकी
तब दुनिया बदलने की आवाज बनाता हूँ
समंदर तो परखता है हौंसले कश्तियों के
और मैं डूबती कश्तियों को जहाज बनाता हूँ
बनाए चाहे चांद पे कोई बुर्ज ए खलीफा
अरे मैं तो कच्ची ईंटों से ही ताज बनाता हूँ
ढूँढों मेरा मजहब जाके इन किताबों में
मै तो उन्हीं से आरती नमाज बनाता हूँ
न मुझसे सीखने आना कभी जंतर जुगाड़ के
अरे मैं तो मेहनत लगन के रिवाज बनाता हूं
नजुमी - ज्योतिषी छोड़ दो तारों को तकना तुम
है जो आने वाला कल उसे मैं आज बनाता हूँ।

Thursday, November 5, 2015

इसीलिए जमाने में दोस्त बनाता हूँ ।


रहता हूं किराये की काया में...
रोज़ सांसों को बेच कर किराया चूकाता हूं....
मेरी औकात है बस मिट्टी
जितनी...
बात मैं महल मिनारों की कर जाता हूं...

जल जायेगी ये मेरी काया ऐक दिन...
फिर भी इसकी खूबसूरती
पर इतराता हूं....
मुझे पता हे मैं खुद के सहारे कब्रिसतान तक भी ना जा सकूंगा...

इसीलिए जमाने में दोस्त बनाता हूँ ।