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Saturday, March 26, 2016

कोशिशें जारी रखो कुछ कर गुजरने की.

कोशिश करो ,हल निकलेगा
आज नही तो,कल निकलेगा !

अर्जुन के तीर सा निशाना साधो,
जमीन से भी जल निकलेगा !

मेहनत करो ,पौधों को पानी दो,
बंजर जमीन से भी फल निकलेगा !

ताकत जुटाऔ,हिम्मत को आग दो,
फौलाद का भी बल निकलेगा !

जिंदा रखो दिल मे उम्मीदों को,
समंदर से भी गंगाजल निकलेगा !

कोशिशें जारी रखो कुछ कर गुजरने की ,
जो है,आज थमा थमा सा,वो भी कल चल निकलेगा ॥

आधुनिक युग कविता

🔹नयी सदी से मिल रही, दर्द भरी सौगात!
       बेटा कहता बाप से, तेरी क्या औकात!!
🔹पानी आँखों का मरा, मरी शर्म और लाज!
      कहे बहू अब सास से, घर में मेरा राज!!
🔹भाई भी करता नहीं, भाई पर विश्वास!
     बहन पराई हो गयी, साली खासमखास!!
🔹मंदिर में पूजा करें, घर में करें कलेश!
      बापू तो बोझा लगे, पत्थर लगे गणेश!!
🔹बचे कहाँ अब शेष हैं, दया, धरम, ईमान!
      पत्थर के भगवान हैं, पत्थर दिल इंसान!!
🔹पत्थर के भगवान को, लगते छप्पन भोग!
      मर जाते फुटपाथ पर, भूखे, प्यासे लोग!!
🔹फैला है पाखंड का, अन्धकार सब ओर!
     पापी करते जागरण, मचा-मचा   कर शोर!
🔹पहन मुखौटा धरम का, करते दिन भर पाप!
     भंडारे करते फिरें, घर में भूखा बाप

Thursday, March 24, 2016

करें जब पाँव खुद नर्तन, समझ लेना कि होली है,

करें जब पाँव खुद नर्तन, समझ लेना कि होली है,
हिलोरें ले रहा हो मन, समझ लेना कि होली है।

किसी को याद करते ही अगर बजते सुनाई दें,
कहीं घुँघरू कहीं कंगन, समझ लेना कि होली है।

कभी खोलो अचानक , आप अपने घर का दरवाजा,
खड़े देहरी पे हों साजन, समझ लेना कि होली है।

तरसती जिसके हों दीदार तक को आपकी आंखें,
उसे छूने का आये क्षण, समझ लेना कि होली है।

हमारी ज़िन्दगी यूँ तो है इक काँटों भरा जंगल,
अगर लगने लगे मधुबन, समझ लेना कि होली है।
बुलाये जब तुझे वो गीत गा कर ताल पर ढफ की,

जिसे माना किये दुश्मन, समझ लेना कि होली है।

अगर महसूस हो तुमको, कभी जब सांस लो करिश,
हवाओं में घुला चन्दन, समझ लेना कि होली है।

कौन रंग फागुन रंगे, रंगता कौन वसंत?

कौन रंग फागुन रंगे, रंगता कौन वसंत?
प्रेम रंग फागुन रंगे, प्रीत कुसुंभ वसंत।
चूड़ी भरी कलाइयाँ, खनके बाजू-बंद,
फागुन लिखे कपोल पर, रस से भीगे छंद।
फीके सारे पड़ गए, पिचकारी के रंग,
अंग-अंग फागुन रचा, साँसें हुई मृदंग।
धूप हँसी बदली हँसी, हँसी पलाशी शाम,
पहन मूँगिया कंठियाँ, टेसू हँसा ललाम।
कभी इत्र रूमाल दे, कभी फूल दे हाथ,
फागुन बरज़ोरी करे, करे चिरौरी साथ।
नखरीली सरसों हँसी, सुन अलसी की बात,
बूढ़ा पीपल खाँसता, आधी-आधी रात।
बरसाने की गूज़री, नंद-गाँव के ग्वाल,
दोनों के मन बो गया, फागुन कई सवाल।
इधर कशमकश प्रेम की, उधर प्रीत मगरूर,
जो भीगे वह जानता, फागुन के दस्तूर।
पृथ्वी, मौसम, वनस्पति, भौरे, तितली, धूप,
सब पर जादू कर गई, ये फागुन की धूल।
बरसाने की गलियन में होली हुई कमाल ,
रंग रंग राधा हुई कान्हा हुए गुलाल
होरी राधा श्याम की और न होली कोई
जो मन राचा श्याम रंग तो रंग चढे न कोई....

Wednesday, March 23, 2016

होली गीत

23 मार्च शहीद दिवस

उरूजे कामयाबी पर कभी हिन्दोस्ताँ होगा
रिहा सैयाद के हाथों से अपना आशियाँ होगा

चखाएँगे मज़ा बर्बादिए गुलशन का गुलचीं को
बहार आ जाएगी उस दम जब अपना बाग़बाँ होगा

ये आए दिन की छेड़ अच्छी नहीं ऐ ख़ंजरे क़ातिल
पता कब फ़ैसला उनके हमारे दरमियाँ होगा

जुदा मत हो मेरे पहलू से ऐ दर्दे वतन हरगिज़
न जाने बाद मुर्दन मैं कहाँ औ तू कहाँ होगा

वतन की आबरू का पास देखें कौन करता है
सुना है आज मक़तल में हमारा इम्तिहाँ होगा

शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले
वतन पर मरनेवालों का यही बाक़ी निशाँ होगा

कभी वह दिन भी आएगा जब अपना राज देखेंगे
जब अपनी ही ज़मीं होगी और अपना आसमाँ होगा

23 मार्च शहीद दिवस

Tuesday, March 15, 2016

मुश्किल नहीं है कुछ दुनिया में

मुश्किल नहीं है कुछ दुनिया में,
  तू जरा हिम्मत तो कर।
    ख्वाब बदलेंगे हकीकत में,
       तू ज़रा कोशिश तो कर॥
   
आंधियाँ सदा चलती नहीं,
   मुश्किलें सदा रहती नहीं।
      मिलेगी तुझे मंजिल तेरी,
         बस तू ज़रा कोशिश तो कर॥

राह संघर्ष की जो चलता है,
  वो ही संसार को बदलता है ।
     जिसने रातों से जंग जीती है,
        सूर्य बनकर वही निकलता है ।

आधुनिक सच

*** आधुनिक सच   ***
मियां-बीबी दोनों मिल खूब कमाते हैं
तीस लाख का पैकेज दोनों ही पाते हैं
सुबह आठ बजे नौकरियों परजाते हैं
रात  ग्यारह तक ही  वापिस आते  हैं

अपने परिवारिक रिश्तों से कतराते हैं
अकेले रह कर वह  कैरियर  बनाते हैं
कोई कुछ मांग न ले वो मुंह छुपाते हैं
भीड़ में रहकर भी अकेले रह जाते हैं

मोटे वेतन कीनौकरी छोड़ नहींपाते हैं
अपने नन्हे मुन्ने को पाल  नहीं पाते हैं
फुल टाइम की मेड ऐजेंसी से लाते  हैं
उसी के जिम्मे वो बच्चा छोड़ जाते हैं

परिवार को उनका बच्चा नहीं जानता है
केवल आया'आंटी' को ही पहचानता है
दादा -दादी ,नाना-नानी कौन होते  है?
अनजान है सबसे किसी को न मानता है

आया ही नहलाती है आया ही खिलाती है
टिफिन भी रोज़ रोज़  आया ही बनाती है
यूनिफार्म पहनाके स्कूल कैब में बिठाती है
छुट्टी के बाद कैब से आया ही घर लाती है

नींद जब आती है तो आया ही सुलाती है
जैसी भी उसको आती है लोरी सुनाती है
उसे सुलाने में अक्सर वो भी सो जाती है
कभी जब मचलता है तो टीवी दिखाती है

जो टीचर मैम बताती है वही वो मानता है
देसी खाना छोड कर पीजा बर्गर खाता  है
वीक ऐन्ड पर मौल में पिकनिक मनाता है
संडे की छुट्टी मौम-डैड के  संग बिताता है

वक्त नहीं रुकता है तेजी से गुजर जाता है
वह स्कूल से निकल के कालेज मेंआता है
कान्वेन्ट में पढ़ने पर इंडिया कहाँ भाता है
आगे पढाई करने वह विदेश चला जाता है

वहाँ नये दोस्त बनते हैं उनमें रम जाता है
मां-बाप के  पैसों से  ही  खर्चा चलाता है
धीरे-धीरे वहीं की संस्कृति में रंग जाता है
मौम डैड से रिश्ता  पैसों  का रह जाता है

कुछ दिन में उसे काम वहीं मिल जाता है
जीवन साथी शीघ्र ढूंढ वहीं बस जाता है
माँ बाप ने जो देखा ख्वाब वो टूटजाता है
बेटे के दिमाग में भी कैरियर रह जाता है

बुढ़ापे में माँ-बाप अब अकेले रह जाते हैं
जिनकी अनदेखी की उनसे आँखें चुराते हैं
क्यों इतना कमाया ये सोच के पछताते हैं
घुट घुट कर जीते हैं खुद से भी शरमाते हैं

हाथ पैर ढीले हो जाते,चलने में दुख पाते हैं
दाढ़- दाँत गिर जाते,मोटे चश्मे लग जाते हैं
कमर भी झुक जाती,कान नहीं सुन पाते हैं
वृद्धाश्रम में दाखिल हो,जिंदा ही मर जाते हैं
: सोचना की बच्चे अपने लिए पैदा कर रहे हो या विदेश की सेवा के लिए।

बेटा एडिलेड में,बेटी है न्यूयार्क।
ब्राईट बच्चों के लिए,हुआ बुढ़ापा डार्क।

बेटा डालर में बंधा, सात समन्दर पार।
चिता जलाने बाप की, गए पडौसी चार।

ऑन लाईन पर हो गए, सारे लाड़ दुलार।
दुनियां छोटी हो गई,रिश्ते हैं बीमार।

बूढ़ा-बूढ़ी आँख में,भरते खारा नीर।
हरिद्वार के घाट की,सिडनी में तकदीर।

तेरे डालर से भला,मेरा इक कलदार।
रूखी-सूखी में सुखी,अपना घर संसार।

Sunday, March 13, 2016

जीत पक्की है

✨जीत पक्की है
कुछ करना है, तो डटकर चल,
           थोड़ा दुनियां से हटकर चल,
लीक पर तो सभी चल लेते है,
          कभी इतिहास पलटकर चल।
बिना काम के मुकाम कैसा ?          
         बिना मेहनत के, दाम कैसा ?
जब तक ना हासिल हो मंज़िल
          तो राह में,राही आराम कैसा ?
अर्जुन सा, निशाना रख, मन में,
          ना कोई बहाना रख !
लक्ष्य तेरे सामने है बस,
      उसी पे अपना ठिकाना रख !!
सोच मत, साकार कर,
         अपने कर्मो से प्यार कर !
मिलेगा तेरी मेहनत का फल,
         किसी का ना इंतज़ार कर !!
जो चले थे अकेले
          उनके पीछे आज मेले है ...
जो करते रहे इंतज़ार ,
   उनकी जिंदगी में आजभी झमेले है।
        

Friday, March 4, 2016

एक कविता उनके नाम जो ये कहते हैं कि सरकारी अध्यापक कुछ नहीं करते हैं - शिक्षक की भूमिका के गीत

एक कविता उनके नाम जो ये कहते हैं कि
    सरकारी अध्यापक कुछ नहीं करते हैं - शिक्षक की भूमिका के गीत

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🌹🌹शिक्षक की भूमिका के गीत🌹🌹
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सरस्वती को वन्दन करके
                      शीश झुकाने आया हूँ
मैं शिक्षक की पीड़ा के
                 कुछ गीत सुनाने आया हूँ
बाल गणना की खातिर
                हम भेज दिए गलियारों में
हमें डाकिया बना दिया है
                   दिल्ली की सरकारों में
दरबाजे की वेल बजाकर
                     हर  दरवाजे  जाते  हैं
किस घर में कितने बच्चे हैं
                 ये खोज खोजकर लाते हैं
भारत की हर जनगणना का
                  इतिहास हमें बतलाता है
बिन शिक्षक हुई न जनगणना
                ये साफ़ साफ़ समझाता है
पल्स पोलियो किट पकड़ाकर
                   हमें डॉक्टर बना दिया
दो बूँद जिन्दगी की देकर के
                   हमें मास्टर बना दिया
शिक्षक अब शिक्षक नही रहा
                     मैं ये बतलाने आया हूँ
मैं शिक्षक की पीड़ा के
              कुछ गीत सुनाने आया हूँ ।।

B.L.O.का बैग थामकर
                     पहुँचे बूथ इलेक्शन में
मानो कोई कमी रह गई
                इनके किसी सिलेक्शन में
मतदाता पहचान पत्र भी
                    बाँटी सभी जनाबों की
घर घर पर्ची बाँट रहे हैं
                  शिक्षक सभी चुनावों की
बैंक में खाता खुलवाने को
                     शिक्षक बना दिए बाबू
भूल जरा सी हो जाये
                  अभिभावक होते बेकाबू
खाते में पैसे ना पहुँचे तो
                  गाली भी मिल सकती है
अभिभावक की वक्रदृष्टि से
                  धरती भी हिल सकती है
शिक्षक से बढ़कर अभिभावक
                    मैं ये समझाने आया हूँ
मैं शिक्षक की पीड़ा के
               कुछ गीत सुनाने आया हूँ।।

मिड डे मिल की पूरी भी
                शिक्षक को पहले खानी है
भले छिपकली इसमें हो
                 खाकर के हमें दिखानी है
शायद अमरौती खाकर
               शिक्षक दुनियाँ में आया है
इसीलिए  खाना  चखने का
                   नियम यहाँ पर पाया है
बागवानी का काम कराकर
                   हमको माली बना दिया
एक हाथ से बजने वाली
                   हमको ताली बना दिया
आये दिन अधिकारी भी
                 कक्षा में आकर झाँक रहे
केवल कमियाँ देख देख
                शिक्षण का स्तर आंक रहे
दिखती नहीं खूबियाँ इनको
                 याद  दिलाने  आया हूँ
मैं शिक्षक की पीड़ा के
               कुछ गीत सुनाने आया हूँ।।

अनीमिया की गोली भी
         शिक्षक बालक को खिला रहे
दवा मारने कीड़ो को
             अपने हाथों से पिला रहे
लेकर के बुकलेट डाइस की
                     घूम रहे कम्प्यूटर पर
मास्टर जी हर रोज ढो रहे
                     डाक सभी स्कूटर पर
साफ़ सफाई भी परिसर की
                  हमको ही करवानी है
मास तालिका हर महीने की
                  हमको ही भरवानी है
बच्चों की रक्षा की खातिर
                   हमको गार्ड बना डाला
हर समय इनकमिंग वाला हमको
                   रोमिंग कार्ड बना डाला
काम न करने की अफवाह को
                   मैं झुठलाने आया हूँ
मैं शिक्षक की पीड़ा के कुछ
                   गीत सुनाने आया हूँ ।।

सेमिनार भी तरह तरह के
                     हमको पूरे करने हैं
मेडिकल के जाँच प्रपत्र
                     हमको पूरे भरने हैं
पुस्तक वितरण हेतु किताबें
                        भंडारों से लानी हैं
डेंगू और चिकनगुनिया की
                     रैली भी ले जानी हैं
खींच के फ़ोटो ऑफिस भेजो
                   मौक ड्रिल भूकम्पों की
तैयारी भी खूब कराओ
                    ऊँची लम्बी जम्पों की
मेले में विज्ञान के शिक्षक
                       रेडी खूब लगाते हैं
चाट पकौड़ी दही पापड़ी
                     सबको खूब खिलाते हैं
शिक्षण से ठेली तक की ये
                      गाथा गाने आया हूँ
मैं शिक्षक की पीड़ा के कुछ
                     गीत सुनाने आया हूँ ।।

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====भरत चौधरी अलीणा=====
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कवि की रचनात्मकता को अपना या किसी और का नाम लिखकर कवि को ठेस न पहुंचाए