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Saturday, January 16, 2016

मा कविता

कहाँ जा रही हो छोड़ कर राह मेँ मुझ इस तरह
अभी तक तो मैँने चलना भी नहीँ
सीखा
अरे मुरझाया हुआ फूल हूँ मैँ तो
अभी तक तो मैँने खिलना भी सीखा
नहीँ
खेल खेल मेँ गिर जाऊँ तो कौन सहारा देगा मुझे
मैँने तो अभी उछलना भी सीखा
नहीँ
चल दी हो तुम कहाँ अकेला कर के मुझे
घर से अकेले अभी तक निकलना भी सीखा
नहीँ
कौन पौँछेगा मेरे आँसू जब भी तेरी याद मेँ रोया तो
अभी तक तो मैँन सम्भलना भी सीखा
नहीँ
देखा कौन अपने आँचल की छाँव इस तपती धूप मेँ तेरे
सिवा
अभी तक मेँ मैँने जलना भी सीखा
नहीँ, मा

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