केलेन्डर कि तरह हम बदलते गये,
बचपन, जवानी,बुढापा में ढलते गये ।
कुछ पुराने रिश्ते को पीछे छोडते गये,
ओर नये रिश्तों से नाता जोडते गये ।
मिट्टी कि दीवार, घर को गिराते गये,
सीमेन्ट, कोक्रिट से घर को सजाते गये ।
घूल,गाँव, गोबर,खेत पीछे छुटते गये,
शहर कि सडको पे फिर दोडते गये ।
टी.वी ओर बीवी से दुनिया भुलते गये,
अपनो में ही "अपने 'को मिटाते गये ।
मतलब हो वहाँ रिश्ते बनाते गये,
ओर रिश्तों में मतलब निकालते गये ।
दिन,महीने ओर साल बदलते गये,
साथ साथ अपने हाल बदलते गये ।
'सागर " जमाने के साथ तुम बदलते गये,
कलम कि जगह अंगूठे से गजल लिखते गये ।
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